Book Title: Ratnakarsuri Krut Panchvisi Jinprabhsuri Krut Aatmnindashtak Hemchandracharya Krut Aatmgarhastava
Author(s): Ratnakarsuri, Jinprabhsuri, Hemchandracharya
Publisher: Balabhai Kakalbhai
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परकीयमेव पारकुंज । वयं-अमे । तपसा-तपत्रके सुतराम अतिशय यास्यामः जश्शुं, तेषां तेमनो आजन्म-दिदारूप पामीशुं हहा-अरेरे
जन्मथी मांडीने कथं केवी रीते निष्क्रयम्-बदलो वृक्षा घरमा, मोटा। ईदृशेन आवा
वस्त्रं पात्र मुपाश्रयं बहुविधं नैदं चतुझुषधं, शय्या पुस्तक पुस्तकोपकरणं शिष्यं च शिदामपि॥ गृहीमः परकीयमेव सुतरामा जन्म रक्षा वयं, यास्यामः कथमीदृशेन तपसा तेषां दहा निष्क्रयम् ॥ ७॥ __ शब्दार्थः-घशा प्रकारनां वस्त्र पात्र अपाशरा घणी जातनी नीक्षा, चार प्रकारनो निकामां लावेलो आहार (१ नय २ जोज्य ३ लेह्य ४ चोष्य), शय्या, पुस्तक, पुस्तकोनां नपकरण, शिष्य श्रने शिकाना ग्रंथ पण (दिवारूप) जन्मथ मांझीने अमे (आज) वृक्ष थया त्यां सुधी पारका लावीने जोगवीए बीए तो श्रावा प्रकारना तपवमे तेमनो
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