Book Title: Ratnakarsuri Krut Panchvisi Jinprabhsuri Krut Aatmnindashtak Hemchandracharya Krut Aatmgarhastava
Author(s): Ratnakarsuri, Jinprabhsuri, Hemchandracharya
Publisher: Balabhai Kakalbhai
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( ए) लुब्धा यथा, नित्यं मुग्धजनप्रतारण कृते कष्टेन खिद्यामहे; आत्मारामतया तथा दणमपि प्रोज्ज्य प्रमादधिषं, स्वार्थाय प्रयतामहे यदि तदा सर्वार्थ सिदिवेत् ॥४॥ . ___शब्दार्थः-निका, पुस्तक, चोलपट, पाठे, रहेवानुं मकान अने नत्तरपट मेलवामां लोनी एवा अमे, जेम नोला माणसनुं उगावq श्राय तेम नित्य आचरण करतां कष्टवझे खेद पामीए बीए (पण) मात्मारामपणे कणमात्र पण प्रमाद रूपी वेरीनों त्याग करोने यात्म साधन अर्थे जो श्रमे प्रयत्न कर्यो होततो ते वखत अमारा सर्व अर्थनी सिद्धि थात ॥४॥
॥गाथा ५ मीना बुटा शब्दोना अर्थ॥ पाखंमानि पाखंमो | ग्रंथा-ग्रंथो पुस्तको. अज्ञान असमज सहस्रशः हजारोगमे | भृशं घणा : वशात्वशथी जगृहिरे-गृहण क- | पेठीरे-नणाया तपांसि-तप | लोललोन
| बहुधा-घणाप्रकारना
रायां
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