Book Title: Ratnakarsuri Krut Panchvisi Jinprabhsuri Krut Aatmnindashtak Hemchandracharya Krut Aatmgarhastava
Author(s): Ratnakarsuri, Jinprabhsuri, Hemchandracharya
Publisher: Balabhai Kakalbhai

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Page 51
________________ मूढः मुर्ख (अमार:- | कथंचन कोइप्रकारे विनाश लाश बसे) अपि-पण वली । संनत्र मुखानि=संचिरं-लांबा व वत गुरूनिःगुरुन (वमे) जवे ते काम विगेरे सूधी . . . भूत्वा थईने अद्यापि-हजु सुधी | मुदो हरख तेपिरे–तपाया नो-नहीं नेजिरेपाम्या कापि-कोई कोई कर्मक्लेश-कर्मरूप क्ले- लेनिरेमात थयां ठेकाणे .. शनो पाखंमानि सहस्रशो जगृहिरे ग्रंथानुशं पेठिरे, लोनाज्ञानवशात्तपांसि बहुधा मुटैश्चिरं तेपिरे; वापि क्वापि कचनापि गुरुनित्वा मुदोनेजिरे, कर्मक्वेशविनाश संनव मुखान्ययापि नो लेनिरे॥५॥ __ शब्दार्थः-हजारो पाखंम गृहण करायां, घणा ग्रंथो जगाया, लोन थने अज्ञानना वशयी घणा प्रकारना तप लांबा वखत सुधी मुर्खपणे तपाया कोई कोई ठेकाणे तो गुरू थई कोई कोई प्रकारे हः रखने पाम्या परंतु कर्मरूप क्लेशनो नाश जेनाथ) संचवे तेवां काम विगेरे इजु सुधी प्राप्त थयां नहि.५

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