Book Title: Ratnakarsuri Krut Panchvisi Jinprabhsuri Krut Aatmnindashtak Hemchandracharya Krut Aatmgarhastava
Author(s): Ratnakarsuri, Jinprabhsuri, Hemchandracharya
Publisher: Balabhai Kakalbhai

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Page 41
________________ ( 0 ) त्वदने चरितं स्वकीयं; जल्पामि यस्मात् त्रिजगत्स्वरूप निरूपकस्त्वं कियदेतदत्र ॥२४॥ ___शब्दार्थ:-हे देवताए पूज्य ! तारी श्रागल मारं चरित्र घणा प्रकारे फोगट शुं कहुं जे कारण माटे तुं त्रण लोकना स्वरूपनो निरूपण करनारो ने तेने ए शी गणतीमा छे ! ॥ २४ ॥ व्याख्याहे सुधाभुक् पूज्य के अमृतने नदण करनारा जे देवो-तेनए पूजा करवाने योग्य एवा हे प्रनो! त्वदने के सारा अग्रजागने विवे स्वीकीयं के मारा चरितं के चरित्रने मुवा केप व्यर्थ, बहुधा के नाना प्रकारे करी, अहं किंवा जल्यामि के हुं शुं वारू कयन करूं ? यस्मात् के जे कारण माटे, वं त्रिजगत् स्वरूप निरूपं के तुं त्रैलोक्यना लक्षणोनुं निरुपण करनारो डे, ते कारण माटे अत्र कियदेतन् के तारे विषे ए मारूं चरित्र कोण गणतीमां ? एटले त्रिभुवन जनोनुं स्वरूप जाणनारो तुं , ए माटे मारी पण सर्व स्थिति तने विदितन ले. ॥॥ ॥ गाथा २५ मीना बुटा शब्दाना अर्थ ॥ दीनोशारदीनोनो नशार क- । धुरंधरः तत्पर रवा माटे । त्वत्-ताराथी

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