Book Title: Ratnakarsuri Krut Panchvisi Jinprabhsuri Krut Aatmnindashtak Hemchandracharya Krut Aatmgarhastava
Author(s): Ratnakarsuri, Jinprabhsuri, Hemchandracharya
Publisher: Balabhai Kakalbhai
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(४५) मां बिजलीनी पेठे वसमा नचिंति था मोहनी धाम श्रावी त्यारे (जय लाग्यो के) अरेरे मरी गया थमे क्यां जश्ए ॥१॥ ॥ गाथा २ जीना बुटा शब्दोना अर्थ. ॥ एकेन एकवडे
रक्षितुम् रहाण करवाने अपि पण
हत्वा-हणीने महाव्रतेन महाव्रतबके
तानि ते यतिनः यतिने, साधूजीतुं अखिलानिबधा खंमेन खंमन करवात्रो उष्टमनस: 5ष्ट मनवाला जग्नेन जागवावमे
वर्तामहे वर्तिए डीए. वा अथवा त्यां जुर्गतिमां
वयं अमे पततः पमतो
तेषां तेमनो स: ते
दमपदं शिदा अपि-पण
विश्यति थशे जगवान-लगवान
कियत्-शी; केटली स्टे-समर्थ थाय ने
जानाति जाणे ले स्वयं-पोते
| केवली केवली जगवान एकेनापि महाव्रतेन यतिनः खमेन नग्मे
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