Book Title: Ratnakarsuri Krut Panchvisi Jinprabhsuri Krut Aatmnindashtak Hemchandracharya Krut Aatmgarhastava
Author(s): Ratnakarsuri, Jinprabhsuri, Hemchandracharya
Publisher: Balabhai Kakalbhai
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(४३) कारक एवं, सबोधिरत्नं के उत्तम प्रकारना जिनधर्म प्राप्ति माटे जे चिंतामणी सर रत्न, तेनीज केवल हुँ निश्चये करी प्रार्थना करूंछ. आ श्लोक मध्ये स्तुति करनारे मनुने शिव श्री रत्नाकर एवं संबोधन आप्यु, तेमांज पोतानुं नाम श्री रत्नाकरसूरि एवं सूचवलंबे. ॥ २५॥
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॥श्रीजिनप्रनसूरि कृत आत्मनिंदा अष्टकम्।।
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॥ गाथा १ लीना बुटा शब्दना अर्थ ॥ श्रुत्वा सांजलीने । बहुविध-घणा प्रकारना श्रद्धाय श्रद्धा करीने तपसा सपवमे सम्यक् बरोबर रीते शोषयित्वा-सुकावीने शुनगुरुवचनं सारा गुरुर्नु वचन | शरीरं शरीरने वेश्म घर
धर्मध्यानाय धर्मध्यानने माटे वासं बास रहेवास
यावत् जेटलामां निरस्य त्याग करीने प्रनवति-थाय प्राव्रज्य-दीदा लेने
समय: वखत अथो-वली
तावत्-तेटलामां पठित्वा जणीने
आकस्मिकीनचिंती
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