Book Title: Ratnakarsuri Krut Panchvisi Jinprabhsuri Krut Aatmnindashtak Hemchandracharya Krut Aatmgarhastava
Author(s): Ratnakarsuri, Jinprabhsuri, Hemchandracharya
Publisher: Balabhai Kakalbhai

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Page 45
________________ (४४) इयं आ विषमा वसमी; आकरी माता आवी पसी हा अरे मोहस्य मोहनी हता-हणाया धाटी धाम कुत्र-क्यां तमित विजली यामः अमे जईए श्व-पेठे श्रुत्वा श्राय सम्यक् शुनगुरुवचनं वेश्मवासं निरस्य, प्रव्रज्यायो पठित्वा बदविधतपसा शोषयित्वा शरीरम् ; धर्मध्यानाय यावत्प्रनवति समयस्तावदाकस्मिकीयं, प्राप्त मोहस्य धाटी तमिदिव विषमा हा हताः कुत्र यामः ॥१॥ शब्दार्थः-शुन गुरुनु वचन सांनत्री तेनी सम्यक प्रकारे श्रद्धा करोने गृहवास बोमी देने, दिदा ले जणी, घणा प्रकारना तपवमे शरीरने सुकावी, जेवो धर्मध्यान माटे समय आव्यो तेटला.

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