Book Title: Ratnakarsuri Krut Panchvisi Jinprabhsuri Krut Aatmnindashtak Hemchandracharya Krut Aatmgarhastava
Author(s): Ratnakarsuri, Jinprabhsuri, Hemchandracharya
Publisher: Balabhai Kakalbhai
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(३ए ) तेमज आगल पण करनार नथी; एवं सिह थाय जे. पुण्येन . र्धते पुण्यं पापं पापेन बर्धत इति वचनात् ॥ यदीडशोहं के जे कारण माटे, पुण्योपार्जन विवर्जित एवो हुँ छु; तेन के ते कारणे हे इश, मम नूतोद्लबद्लावि नवत्रयी नष्टा के मारा पूर्वे थएला, वर्तमान कालना अने आगल थनारा एवा जन्मनी त्रयी नाश पामी एटले सुकृत संपादन विना निरर्थक थइ. एवो जावार्थ ॥ ३॥
॥ गाथा २४ मीना बुटा शब्दोना अर्थ. ॥ किंवा शुं वारूं
यस्मात्-जे कारण माटे मुधा-व्ययः फोगट
त्रिजगत्-त्रण लोक अहं हुं
स्वरूप-लक्षण बहुधा घणा प्रकारे निरूपक: निरूपण करनारो सुधाभुक्-देवोने
त्वं-तुं . . ज्ज़्य-पूजवा योग्य कियत-शा हिसावन कोण त्वदग्रे-तारी आगल • गणतीमां चरितं-चरित्रने
एतत्-ए; आ स्वकीयं-मारा
अत्र-अहिंयां जल्पामि-कहुं; कथन करुं ।
किंवा मुधाऽहं बहुधा सुधाजुक्, पूज्य
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