Book Title: Ratnakarsuri Krut Panchvisi Jinprabhsuri Krut Aatmnindashtak Hemchandracharya Krut Aatmgarhastava
Author(s): Ratnakarsuri, Jinprabhsuri, Hemchandracharya
Publisher: Balabhai Kakalbhai

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Page 32
________________ (३१) माप्त थयुं बतां में सत्कर्म कयु नहि ए व्यर्थ थयु. नक्तं च ॥ अरएयरुदितं कृतं शवशरीर मुशर्तितं श्वपुलम वनामितं बधिर कर्ण जापः कृतः स्यले कमलरोपणं मुचिर सूपरे वर्षणं यदंध मुखमंझनं यद बुधे जने जाषितं ॥ इति ॥ १७ ॥ ॥ गाथा १ए मीना बुटा शब्दना अर्थ ॥ चक्रे करी जैनधर्मे जैन धर्ममा मया में स्फुट-प्रगट असत् अबता शर्मदे मुख देनारामां अपि पण अपि-पण कामधेनु-कामऽघा गाय जिनेश हे केवलिपति ! कल्प-कल्पद मे मारी चिंतामणिषु चिंतामणीमां पश्य-जून स्पृहा-श्वारूप विम्ढ विशेष मुर्ख आत्तिः पीमा जाव-स्थिति; हालत न नहीं चक्रे मया ऽसत्स्वपि कामधेनु, कल्पा चिंतामणिषु स्पृहाति; न जैनधर्म स्फुटशर्मदेऽपि, जिनेश मे पश्य विमूढनावं ॥ १० ॥

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