Book Title: Ratnakarsuri Krut Panchvisi Jinprabhsuri Krut Aatmnindashtak Hemchandracharya Krut Aatmgarhastava
Author(s): Ratnakarsuri, Jinprabhsuri, Hemchandracharya
Publisher: Balabhai Kakalbhai

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Page 37
________________ वचनेषु-वचनो (सांजली र. | अपि पण हेवा) मां देव हे देव ! शांतिः उपशम तार्यः-तरवा योग्य न नहि कथंकारं कोण प्रकारे करीने अध्यात्मलेश अध्यात्मनोलव अयं आ मम-मारो जवाब्धिःजवसमुश् का कोई - वैराग्यरंगो न गुरूदितेषु, न जनानां वचनेषु शांतिः; नाध्यात्मलेशो मम कोऽपि देव, तायः कथं कारमय भवाब्धिः ॥२२॥ “शब्दार्थः-गुरुए कहेला उपदेशमा मने वैराग्यनी वासना न थई, पुर्जनानां वचनो सानली र. हेवामां नपशम थयो नहीं, मने काई अध्यात्मनो लव पण प्राप्त थयो नहीं तो हे देव ! ९ कोण प्र. कारे करीने श्रा नवसमुह तरवा योग्य बं. ॥ २२ ॥ - ___व्याख्याः -हे देव, मया के हुं अयं लवाब्धि के0 आ जवसमुह, कथंकारं तार्यः के कोण प्रकारे करीने तरवाने माटे योग्य बं? जे पुण्य कर्म विना, तरवा माटे अशक्य, ते पुण्य कर्म

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