Book Title: Ratnakarsuri Krut Panchvisi Jinprabhsuri Krut Aatmnindashtak Hemchandracharya Krut Aatmgarhastava
Author(s): Ratnakarsuri, Jinprabhsuri, Hemchandracharya
Publisher: Balabhai Kakalbhai
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बते
(७) गी: वाणी
अर्के सूर्य (बते) अपि पण
केवलार्के केवल ज्ञानरूप सूर्यश्यं एवी अधारि-धारणा करी परिस्फुटे अति प्रगट कर्णे कानमा
सति-उतां अधारिकणे सांजली
अपि-पण त्वयि तुंबते
देव हे देव ! केवल केवल
धिक् धिक्कार हो मां-मने नात्मा न पुण्यं न नवो न पापं, मया विटानां कटुगीरपीयं, अधारि कर्णे त्वयि केवलार्के, परिस्फुटे सत्यपि देव धिङ्मां ॥१७॥ ____ शब्दार्थः-तुं केवलज्ञानरूप सूश्रिति प्रगट बतां पण में नास्तिकोनो थावो वाग) सांजवी के
आत्मा नथी, पुण्य नथी, नव नथी, पाप नथी तो हे देव ! मने धिक्कार हो. ॥ १७ ॥
व्याख्याः-है जगवन् ! केवलार्के त्वयि के केवलझानना प्रकाशक केवल सूर्यज, एवो तुं, परिस्फुटे सत्यपि के अति प्रगद