Book Title: Ratnakarsuri Krut Panchvisi Jinprabhsuri Krut Aatmnindashtak Hemchandracharya Krut Aatmgarhastava
Author(s): Ratnakarsuri, Jinprabhsuri, Hemchandracharya
Publisher: Balabhai Kakalbhai

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Page 19
________________ तत्-ते स्वं-पोतार्नु स्वरूप हिया लजाए विषयांधलेन-विषयोवमे अंध एवज थएला में सर्वज्ञ हे सर्व ! प्रकाशितं प्रगट करेलु सर्व-बधुः सर्वे स्वयमेव-पोताना मेलेज जवतः तमारी वेरिस-तुं जाणे हे विमंबितं यत्स्मरघस्मरार्ति, दशावशात्स्वं विषयांधलेन; प्रकाशितं तन्मवतो ह्रियैव, सर्व सर्व स्वयमेव वेत्ति ॥११॥ . शब्दार्थः--विषयोवमे अंध थएला में नकण करनारः कामदेवनी पीमाना वशथी पोतानुं स्वरूप जे विमव्युं ते हे सर्वज्ञ ! में लगाए करीने सहितज तारी आगल प्रकाश्युं बे. (वधारे शुं कहुं) तुं पोतेज सर्व जाणे बे. ॥११॥ व्याख्या:-हे नाथ ! यत् के जे, विषयांधलेन के शद्धादिक विषये करी विवेकरूप नेत्रो जेणे निमीलन कयाँ ले एवो हूं तेणे-स्मरघस्मरातिदशावशात् स्मर के कामदेव-तेज कोइ एक

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