Book Title: Ratnakarsuri Krut Panchvisi Jinprabhsuri Krut Aatmnindashtak Hemchandracharya Krut Aatmgarhastava
Author(s): Ratnakarsuri, Jinprabhsuri, Hemchandracharya
Publisher: Balabhai Kakalbhai

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Page 24
________________ (१३) नम्नहि अपि-पण शुद्ध सिद्धांत पवित्र आगम अगात-गयो (रूप) तारक हे तारनार ! योध-समुश् कारणं-कारण मध्ये-मां; विषे कि=j धौतः धोयो लोलेक्षणावक्रनिरीक्षणेन, यो मानसे रागलवो विलग्नः॥ न शुक्षसिद्धांतपयोधिमध्ये, धौतोप्यगात्तारक कारणं किं॥१४॥ शब्दार्थः-चपल नेत्रवाली स्त्रीनां मों निहालीने जोवाथी मारा चित्तमा जे रागनो अंश चो व्यो ते हे तारनार ! पवित्र श्रागमरूपी समुअमां धोए बते पण न गयो तेनुं कारण शुं ? ॥ १४ ॥ ____ व्याख्याः-हे त्रिकाल वेदिन! मारा, मानसे के चित्तने विषे, लोलकणावत्र निरीक्षणेन के जेनां नेत्रो चंचळ ले एवी जे रमणी; तेनुं जे मुख, तेना अवलोकने करीने यः रागलव; के जे राताशनो अंश, विलन के विशेष करी संलग्न थयो; ते रागलव,

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