Book Title: Ratnakarsuri Krut Panchvisi Jinprabhsuri Krut Aatmnindashtak Hemchandracharya Krut Aatmgarhastava
Author(s): Ratnakarsuri, Jinprabhsuri, Hemchandracharya
Publisher: Balabhai Kakalbhai

View full book text
Previous | Next

Page 25
________________ (२४) तारक के हे संसार पार पापक ? शुक्ष सिद्धांत पयोधि मध्ये के निर्दोष जे सिांत के आगम, तेज कोश्क समु-तेना मध्य जागने विषे धौतोपि के कालन कर्यु बतां पण नागात् के नी. कली गयो नहि. तत्र किं कारणं के ते विषे कारण शुं हशे? जे हशे ते हुँ जाणतो नथी; परंतु.माहारी विषयोने विषे दृढासक्तताएज एनुं कारण हशे. एवं मने लागे जे ॥ १५ ॥ . . ॥ गाथा १५ मीना बुटा शब्दोना अर्थ ॥ अंगं शरीर स्फुरत्-देदीप्यमान मन्ना-कांति चंग-मुंदर; सारं प्रधान-मोटी, अधिकारीनी न-नथी प्रभुता-मोटाई ऐश्वर्यता गण-समूह चली गुणानां-गुणोनो कापिकोईपण नम्नथी तथापिः-तोयपण निर्मल-मलरहित शुद्ध अहंकार-अनिमान; गर्व कोपि-कोपण कर्थित-परालव पामेलो; कलाविलासः कलानो विलास कदर्यना पामेलो कलानुं उद्दीपन । अहं हुं अंगं न चंगं न गणो गुणानां, न निर्मलः कोपि नम्नथी

Loading...

Page Navigation
1 ... 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64