Book Title: Ratnakarsuri Krut Panchvisi Jinprabhsuri Krut Aatmnindashtak Hemchandracharya Krut Aatmgarhastava
Author(s): Ratnakarsuri, Jinprabhsuri, Hemchandracharya
Publisher: Balabhai Kakalbhai
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(१)
घस्मर के जक्षण करनारो, तेनी जे प्रति के० पीमा - तेनी जे दशा के अवस्था, तेना स्वाधीनपणा माटे स्वं के० पोतानं स्वरूप विनंतिं के० निद्यता प्रत्ये पमायुं. ते हमणां हिया के० कथनरूप लगाए जवतः एव प्रकाशितं के० तनेज निश्वये करी प्रगट करेलं बे. एटले लका युक्त एवो जे हुँ, ते प्रत्ये अवलोकन करी तें मारां सर्व आचरण जाएयां बे एवो अर्य. जे कारण माठे हे सर्वज्ञ ! तुं सर्व जगत्ने स्वयमेव वेल्स के पोताना ज्ञाने करी जाणे बे. ॥१२॥
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॥ गाया १२ मीना बुटा शब्दना अर्थः ॥
वृथा = फोकट निष्फल
कर्म = पाप कर्म
ध्वस्तः = अनादर कर्यो
अन्य मंत्र = बीजा मंत्रोवडे
रमेष्टिमंत्रः = नवकार मंत्र
कुशास्त्रवाक्यैः = कुशास्त्रनां वाक्योवमे
निहता = नाश पमामी; न सां
नली
यागमोक्तिः = सिवांनी वाणी कर्तु करवाने
देवरागी द्वेषी देव
संगाव = सोबतथी; सेवाथी अवांबि= में इहयुं
नाथ- हे नाथ !
मति = बुद्धि
चमः खसी जनुं ते; विपर्यास मे=मारो
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