Book Title: Ratnakarsuri Krut Panchvisi Jinprabhsuri Krut Aatmnindashtak Hemchandracharya Krut Aatmgarhastava
Author(s): Ratnakarsuri, Jinprabhsuri, Hemchandracharya
Publisher: Balabhai Kakalbhai
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( १७ ) सदोष करी, बीजाने अर्थ चिंतवावडे करी मारुं भन दोषवालुं कर्यु ( ए माटे ) हे प्रभु! मारुं शुं थशे ? ॥ १० ॥
व्याख्या : - हे विजो ! मया परापवादेन मुखं सदोषं कृतं के० में बीजाना द्वेषादिके करीने सत्य ने सत्यरूप दूषणनी जे उत्पत्ति, ते रूप अपवाद - तेणे करी पोतानुं मुख दोषयुक्त करें, तेमज पोतानां नेत्र, परस्त्रीजनवीन के० परनारीना वलोकनेक दोष सहित एवां कर्या; तेमज पोतानुं चित्त, परापाय विचिंतनेन के बीजाना जे अपाय के अनर्थ, तेना विचारे करीने दोष सहित कर्यु, ए माटे हे मनो, अहं कथं जविष्यामि के० एव पाप कर्माचरणे करी आगल मारी शी गती थशे ? एवो जावार्थ ॥ १० ॥
॥ गाथा ११ मीना बुटा शब्दांना अर्थ |
बिडं बितं विरूंब्यु; निघता प्रते
-
पमारूयुं.
यत् = जे स्मर = कामदेव
घस्मर नक्षण करनार
आर्ति-पीमा
दशा=अवस्था
वशात्-वशथी
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