Book Title: Ratnakarsuri Krut Panchvisi Jinprabhsuri Krut Aatmnindashtak Hemchandracharya Krut Aatmgarhastava
Author(s): Ratnakarsuri, Jinprabhsuri, Hemchandracharya
Publisher: Balabhai Kakalbhai

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Page 17
________________ (१६) माटे थयु, अने मे विद्याध्ययनं के0 मारुं विद्यापठन, ते पण वादायाभूत् के परवादना जयने माटे थयुं ॥ ए॥ ॥गाथा १० मीना बटा शब्दोना अर्थ ॥ परापवादेन पारकी निंदावमे; । पर बीजाने पारका अवर्णवाद बोलवावडे अपाय अनर्थ मुख-म्होडं विचिंतनेन विचारवे करीने सदोषं-पापवालु दोषयुक्त कृतं कर्यु नेत्रं आंखने नविष्यामि थशे परस्त्रीजनवीक्षणेन परस्त्री जो- कथं केम; शुं विनो-हे प्रभु! चेतः चित्त अहं-हुँ; (महारु) परापवादेन मुखं सदोषं, नेत्रं परस्त्रीजनवीक्षणेन; चेतः परापायविचिन्तनेन, कृतं नविष्यामि कथं विनोऽहं ॥ १० ॥ शब्दार्थ:--पारकी निंदावमे में (मारं ) मों दोषयुक्त कर्यु, पारकी स्त्री जोवावमे मारी आंख वावके

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