Book Title: Ratnakarsuri Krut Panchvisi Jinprabhsuri Krut Aatmnindashtak Hemchandracharya Krut Aatmgarhastava
Author(s): Ratnakarsuri, Jinprabhsuri, Hemchandracharya
Publisher: Balabhai Kakalbhai

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Page 15
________________ (१४) वशथी जतुं रहुं तो हे स्वामिन् ! कोनी आगल हुँ पोकार करूं ॥ ७॥ ___ व्याख्याः-हे नायक हे स्वामिन् ! त्वत्तः के ताराथी सुरुलन के अत्यंत उर्लन एवं इदं रत्नत्रयं के ए झान, दर्शन, चारित्र लक्षण रत्ननुत्रय, मयाप्तं के में संपादन कर्यु हतुंः परंतु ते जूरिजवत्रमेण के घणा जन्मने विषे श्रम के भ्रांति-तेणे करीने अने प्रमाद निशवशतः के मद प्रमुख प्रमाद अने पांच प्रकारनी प्रसिह जे निश-तेना महात्म्ये करी तद्गतं के ते उर गयुं एटले अंतर्धान पाम्यु. ए माटे हवे कस्यागतः पूत्करोमि के० ते गयुं एटले हवे कोना आगल पोकारूं ? ए तो तारी कृपाएज प्राप्त थाय तो थाय एवी आशा बे. ॥ ॥ ॥गाथा ए मीना बुटा शब्दोना अर्थ ॥ वैराग्य रंगः वैराग्यनो रंग । वादाय वाद करवाने अर्थे परवंचनाय बीजाने ठगवाने अर्थे विद्याध्ययनं विद्यानो अज्यास धर्मोपदेशः धर्मनो नपदेश । च-अने, वली जन रंजनाय लोकोने खुशी । मे मारो करवाने अर्थे अनूत=थयो

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