Book Title: Ratnakarsuri Krut Panchvisi Jinprabhsuri Krut Aatmnindashtak Hemchandracharya Krut Aatmgarhastava Author(s): Ratnakarsuri, Jinprabhsuri, Hemchandracharya Publisher: Balabhai Kakalbhai View full book textPage 6
________________ निर्विकल्प: जेमतेम बिकल्प र- निजाशयं-पोतानो आशयः पोहित तानो अभिप्राय तथा-तेम; तेवी रीते सानुशयः पश्चाताप सहित यथार्थ जेवो ले तेवो; साचेसाचो तव-तमारी कथयामि हुं कहुं बुं अग्रे-आगल नाथ हे नाथ ! किं बाललीलाकलितो न बालः, पित्रोः पुरो जल्पति निर्विकल्पः, तथा यथार्थ कथयामि नाथ, निजाशयं सानुशयस्तवाग्रे ॥ ३ ॥ शब्दार्थः-शुं बालकनी क्रीमायुक्त एवो बालक मावापनी श्रागल जेम तेम नथी बोलतो ? (बोलेज.) तेवी रीते हे नाथ ! हुँ मारो आशय जेवो ले तेवो पश्चाताप सहित तारी श्रागल कहुंढुं॥३ ___व्याख्याः-हे प्रजो जेम बाललीला कलितः के बालकनी जे लीला के धूलने विषे खेल इत्यादिक, तेणे कलित के युक्त अने निर्विकल्प के जेथी जाषण अन्नाषणरूप लेद गयो डे, एवो जे बाल ते पित्रोः पुरः के मातपितानी पासे किनजस्पति के शुंPage Navigation
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