Book Title: Pravachansar Parmagam
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Dulichand Jain Granthmala

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Page 8
________________ [८] अवस्थासे ही उन्होंने श्री कुन्दकुन्दाचार्य विरचित 'प्रवचनसार'का श्री अमृतचंद्रसूरिकी संस्कृत टीका तथा पांडे श्री हेमराजकी भाषाटीकाके अनुसार पद्यानुवाद करना आरम्भ कर दिया था। यह मूल ग्रन्थका हूबहू अनुवाद है। कविधीने इस ग्रन्यके प्रणयनमें जितना परिश्रम किया उतना अन्य ग्रंथोंमें नहीं। इसे पहलीवार सं. १८६३ में प्रारम्भ कर सं. १९०५ में तीसरी बार पूर्ण किया। इस प्रकार इसमें कविकी ४२ वाँकी साधनाका नवनीत और अनुभवका निचोड़ भरा गया है। -डॉ. नरेन्द्र भनावत १ से १ -: अनुक्रमणिका : - अध्याय पीठिका १. ज्ञानाधिकार २. सुखाधिकार ३. ज्ञानतत्त्वाधिकार ४. ज्ञेयतत्त्वाधिकार ५. विशेप ज्ञेयतत्त्वाधिकार ६. व्यावहारिक जीव तत्त्वाधिकार ७. चारित्राधिकार ८. एकाग्ररूप मोक्षमार्गाधिकार ९. शुभोपयोगरूप मुनिपदाधिकार १०. पंचरत्न तत्त्वस्वरूप ११. कवि व्यवस्था तथा वंशावली आदि १२ से ५६ ५७ से ६७ ६८ से ८४ ८५ से ११६ ११७ से १३८ १३९ ले १७४ १७९ ले २०३ २०४ २१७ से २३४ २३४ से २३८ २३९ से २४२

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