Book Title: Pravachansar Parmagam Author(s): Nathuram Premi Publisher: Dulichand Jain Granthmala View full book textPage 7
________________ [७] और व्यवहारमार्गके मर्मज्ञ हैं। व्यवहार और निश्चयका स्वरूप समझे विना इस ग्रन्थके पाठक अर्थका अनर्थ कर सकते । और उनकी वही गति हो सकती है, जैसी समयसारके अध्ययनसे बनारसीदासजीकी हुई थी। अतएव पाठकोंको चाहिये कि, नयमार्गका भली भाँति विचार करके इसका स्वाध्याय करें, जिसमें मात्माका यथार्थ कल्याण हो । इस ग्रन्थके संशोधनमें जहाँतक हमसे हो सका है, किसी प्रकारकी त्रुटि नहीं की है। तो भी भूल होना मनुष्यके लिये एक सामान्य बात है। इसलिये यदि कुछ अशुद्धियाँ रह गई हों, तो विशेपशोको सुधार करके पढ़ना चाहिये। और हम पर क्षमाभाव पारण करना चाहिये। अलमतिविस्तरेण विशेषु सरस्वती सेवकचम्बई नाथूराम प्रेमी १०-१०-०८ देवरी (सागर) निवासी । पत) । भक्तकवि वृन्दावनजी (डॉ. नरेन्द्र भनावत) आपका जन्म सं० १८४८ माघ शुक्ला १४ सोमवार पुष्य नक्षत्रमें जि. शहावादके बारा नामक ग्राममें हुआ था। आप गोयलगोत्री अग्रवाल थे। सं. १७६० में श्री वृन्दावन बारह वर्पकी अवस्थामें काशी आ गये थे। काशीमें काशीनाथ आदि विद्वानोंकी संगतिसे अध्यात्मिक और वैचारिक विकास हुआ। वे स्वभावसे संत एवं सरलताकी प्रतिमूर्ति थे । जीवनके अन्तिम वर्षों में भगवान के प्रेममें इतनी तन्मयता थी कि वाह्य वेशभूपाकी परवाह नहीं रही। केवल एक कोपीन और चादरसे ही काम चलने लगा, पैरोंमें जूते भी न रहे। पद्यानुवादः-कविमें अनुवादकी प्रतिभा थी। पन्द्रह वर्षकीPage Navigation
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