Book Title: Pratima Shatak
Author(s): Yashovijay Maharaj, Bhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 19
________________ केत जे नमतमाने उहाकवी ने (३) श्री जैनेश्वरी प्रतिमा सदा जयवंत वर्ते जे. जैनेश्वरी अर्थात् जिनेश्वर संबंधी प्रतिमा ( मूर्ति ) जे सर्वदा प्रवाहरूपे स्पष्ट के, ते निरंतर विजय पामे , अर्थात् सर्वोत्कृष्टपणे वर्ते बे. ( अहिं जि धातुनो अर्थ उत्कर्ष थाय बे, ते विषे आख्यातचंत्रिका नामना ग्रंथमा लखेडे के जि धातु पराजव अने उत्कर्ष अर्थमां प्रवर्ते ने अने ते अकर्मक . अहिं विजयते तेमा वि उपसर्ग बे, ते सर्वथी अधिकपणुं सूचवेने ) ते प्रतिमा केवी ? इंञोनी श्रेणिवडे जे नमस्कार पामेली . श्रा विशेषणथी एवो व्यंगार्थ निकले के के ते प्रतिमाने उलवनारा कुमतिउंने इंञोना निश्चल श्राप लागे जे. वली ते प्रतिमा केवी जे? प्रताप अर्थात् प्रव्य नंडार अने दंडना तेजनुं जे गृह . आ तेज स्थापनाजी संबंधी जाणवु. अने स्थापनाजीनो उपचार करी तेनी व्याख्या करवी. तेथी एवो व्यंगार्थ जणाय के ते प्रतिमाने उलवनारा कुमति श्रीलगवंतना प्रतापानिथीज जस्म थशे. पुनः ते प्रतिमा केवी जे? जव्य अर्थात् आसन्न सिधिवाला प्राणिना नेत्रने अमृतसमान , कारण के तेना दर्शनथी नेत्रना सर्व रोग दूर थाय ने अने परम आनंद प्राप्त श्राय जे. आ विशेषणथी एवो व्यंगार्थ निकले के ते प्रतिमाना दर्शनश्री जेना नेत्रने आनंद श्रतो नश्री, ते अजव्य के दूरजव्य जाणवा. वली ते प्रतिमा केवी जे? सिद्धांतना रहस्यनो विचार करवामां चतुर एवा विधानोए जेने प्रमाण करेली . बलात्कार के दबाणथी नही, परंतु प्रीतिथी जेने प्रमाण करेली. तेथी एवो व्यंगार्थ जणाय ने के सिद्धांतमा प्रतिमानुं प्रमाण अने साबिती रहेली

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