Book Title: Pratima Shatak
Author(s): Yashovijay Maharaj, Bhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(ए)
पासे जे कराय बे ते स्तुति समजवी. वली तेवीज रीते ऽव्य निक्षेपनी आराध्यता पण सूत्रमां स्फुट रीते जाय बे. जेम श्री आदिनाथ जगवंतना समयमां साधु ज्यारे आवश्यक क्रिया करे त्यारे चतुर्विंशति स्तवना आराधनमां त्रेवीश प्रव्य जिन पण आराध्यपणाने पामेवे . श्री शषनदेव ने अजीतनाथ विगेरेना समयमा एक स्तव, विस्तव विगेरेनी प्रक्रिया करी शकाय नहि कारण के शास्वता अध्ययननो पाठ लेशमात्र फेरववो ते मृत्युना कोपनी जेम वज्रलेप जेवो बे अर्थना उपयोगथी रहित एवं कीर्तन राजानी वेठजेवुं बे, अने तेथी ते योगी कुल जन्मने बाधक बे, ते कारणथीज द्रव्य श्रावश्यकनो निषेध करेलो बे, कारणके सूत्रमां तेनो उपयोग रेहेतो नथी, वली प्रव्यनी उद्घोषणा अनुयोगद्वार विगेरे सूत्रोमा सर्वत्र प्रसिद्ध बे, परंतु अर्थ - ना उपयोगना स्विकारपणाथीज द्रव्यजीवनी आराध्यता सिद्ध थाय . आ उपरथी शासननी विडंबना करनारा लुंपको एवो उपहास करेले के, जो द्रव्य जिननुं श्राराध्यपणुं स्विकारी एतो हस्तमां लीली अंजलिमां रहेला सूक्ष्म जीवोनुं पण आराध्यपणुं प्राप्त थाय, कारण के कोइ समये ते जीवोने पण जिनपदवीनी प्राप्तिनो संभव बे. या तेमनो उपहास तदन निर्माय बे. कारण के तेवा जीवोमां प्रव्य जिनपणाने निश्चय करनारा पर्यायनुं आपने ज्ञान नथी. जो तेवुं ज्ञान होयतो ते जीवोनुं पण श्राराध्यपणुं संजवेळे. श्री शेषन परमात्मानी वाणी थी जिनपर्याय जाणी जरतचक्रीए मरिचिने वंदना करी हती, ते अधिकार प्रसिद्ध बे. दीर्घकाले पण प्रस्थक विगेरेना दृष्टांतथी दूर