Book Title: Pratima Shatak
Author(s): Yashovijay Maharaj, Bhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text ________________
(ए) हवे बीजां दृष्टांतो आपी स्थापना सिद्ध करे बे. प्रश्नव्याकरणे सुवर्ण गुलिकासंबंध निर्धारणे, शस्ते कर्मणि दिग्यग्रहरहः ख्यातौ तृतीयांगतः। सम्यग्नावित चैत्यसादिकमपि स्वालोचनाझाश्रुतौ, सूत्राच व्यवहारतो नवति नःप्रीतिर्जिने स्थिरा ६४
अर्थ-प्रश्न व्याकरणमां आपेला सुवर्णगुलिका दासीना संबंधथी, श्रीस्थानांग सूत्रमा आपेला श्रेष्ठ कर्मवाला पूर्व उत्तर बे दिशारूप ग्रहना तात्पर्यनी सिद्धिथी अने सद्लावने प्राप्त करेला चैत्योनी सादीए व्यवहारसूत्रथी करेली आलोचनाना श्रवएणश्री अमारी प्रीति श्रीस्थापना प्रनुने विषे दृष्टपणे स्थिर श्रयेली बे.
विशेषार्थ-श्रीप्रश्नव्याकरण नामना दसमा अंगमां सुवर्णगुलिकाना संबंधन निर्धारण जे, तेने लीधे, तथा श्रीस्थानांग सूत्रथी श्रेष्ठ एवा कर्ममा पूर्व अने उत्तर दिशारूप ग्रहना तात्पयनी जे सिधि, ते अये उते अने सारीरीते सद्लावने प्राप्त करेला चैत्योनी सादीए व्यवहारसूत्रथी सम्यक् प्रकारे करेली आलोचनानुं श्रवण कर्येउते, अमारी प्रीति श्रीस्थापना जिनेंप्रने विषे स्थिर श्रयेली . दसमा अंगना तूर्याश्रवधारने विषे सुवर्णगुलिकानुं अख्यान . यथा. “ सुवन्नगुलिभाएत्ति " इत्यादि-सिंधु सौवीर देशमा विदर्जेक नगरने विषे. उदायन नामे राजा हतो, तेने प्रत्नावती नामनी राणी हती. ते राणीने देवदत्ता नामनी एक दासी हंती. ते दासीने देवताए निर्माण करेली श्री महावीर लगवंतनी प्रतिमा प्राप्त श्रझ, तेनी उपासना करता
Loading... Page Navigation 1 ... 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158