Book Title: Pratima Shatak
Author(s): Yashovijay Maharaj, Bhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 133
________________ (११७) कल्पनावडे करेली हिंसा संबंधी कर्ममा, तेनु उत्पादन तथा उत्पत्तिवडे करीने कांइपण सत्यनेद नथी. ७५ विशेषार्थ-सद्व्यवहार एटले सिद्धांतमां बतावेला जनव्यवहारथी विधिकरनार श्रावक अने साधुने हिंसा थती नश्री कारएके प्रमादना योगथी प्राणीऊना प्राणनो वियोग करवो तेज हिंसा कहेवाय जे एम सिद्धांतमां कहेलुं . वली पोताना गुण स्थानने योग्य एवी यतना बडे प्रमादनो त्याग करवामां ते बनेमा विशेष लेद नथी तेथी धर्मकर्ममां हिंसाज नथी एम सिघथयु. वली बाहेरना लोक व्यवहारनी अपेक्षाए ते प्राण वियोग रुप हिंसा गृहस्थ अने साधु बंनेने बाधाकारी न थाय अर्थात् मिश्रपदनो प्रवेश करनारी न पाय, अने इच्छा कल्पना एटले रसपूर्वक करेली श्चावडे करेला नियमित व्यापारवाला हिंसा संबंधी कर्ममां तेनुं उत्पादन अने उत्पत्तिवडे करीने कांइपण सत्यनेद नथी परंतु ते स्वकपोल कल्पित कल्पनावडे मुग्ध जनना मनने विनोद करवा मात्र . ०५ अपवादात्मक कर्ममां विधि न होय पण यतना नागमांज होय तेथी स्वचंदपणे प्राप्त थवाथी तेमां मिश्रपणुं थाय-ते विषे कहे . पूर्णेऽर्थे पि विधेयतावचनतः सिझा विात्मिका, नागे बुछिकृता यतः प्रतिजनं चित्रा स्मृता सा करे। नोचेौनवचः क्रियानयविधिः सर्वश्च मिश्रो जवे, दित्थं नेदमयं न किं तव मतं मिश्राध्यं बुंपति॥६॥

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