Book Title: Pratima Shatak
Author(s): Yashovijay Maharaj, Bhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
( १२४ )
हज बे, एम जोता एवा मने तेना अधिकारवाला व्यस्तवनुं मिश्रणुं रूचे बे, एम जो होयतो अरे पुराशय, गुरूकुलनी उपासनाने नही करनारा एवा तने सिद्धांतना तात्पर्यनुं ज्ञान केम संजवे, तेमां तो व्यवहार नयना आदेशवडे बंधना अनुपाय रूप ऋण पक्षनुं वर्णन करेलुं बे, अने संग्रह नयना आदेशथी फलनी अपेक्षा तो बे प्रकारज बे. तेथी पूजा ने पौषधत्रत करवामां शो विशेष बे ?
ते बातमां श्रावकोने मिश्रपहनो नेद बे, एवा अभिप्रा यथी कहे बे. सिद्धांते परिभाषितो हि गृहिणां मिश्रत्वपदस्ततो, बंधनौपयिको विरत्य विरतिस्थानात्त्वयोत्प्रेक्ष्या । अंतर्भावित एव सोऽपि पुरतो धर्मे फलापेक्षया, पूजापोषधतुल्यताऽस्य किन न व्यक्ता विशेषेक्षिणां ॥ अर्थ - धर्मपक्ष, धर्मपक्ष ने धर्माधर्म पक्ष - एमत्र पक्ष
मां सिद्धांत विषे गृहस्थोने मिश्र ( धर्माधर्म ) पक्ष कहेलो बे, ते बंधना उपाय रहित पक्ष विरति अविरतिना स्थामां जे वय बेतेनी उत्प्रेक्षाथी कहेलो बे अने ते मिश्रपक्ष पण आगल फलनी अपेक्षाए धर्ममां अंतर्हित थइ गयेलो a. ते गृहस्थ विशेष जोनारा पुरूषोनी दृष्टिए पूजा पौषधी तुझ्या शुं स्पष्ट नथी ? अर्थात् स्पष्ट बे. ए १ विशेषार्थ - धर्मपक्ष ने धर्माधर्म पक्ष, ए त्रण पक्ष बे. मां धर्माधर्म पहने कहे बे. सूत्रकृतांग नामना सिद्धांतने विषे