Book Title: Pratima Shatak
Author(s): Yashovijay Maharaj, Bhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(१३५) अर्थ-हे सर्व दुःखथी रहित प्रनु, हे सदा आनंदमयनाथ ! तमारी मूर्तिने जोर जोइ, ढुंमारा हृदयमां विश्वास मेलवी, अव्यय, अविनाशी एवा हर्षने प्राप्त थयेलो बुं. हे मनुष्यना हितकारी प्रनु ! उपाधि वगर वधता गुणस्थानने योग्य जेने विश्व नमे ने अने जे विशेषथी प्रकाशित के एवी ते प्रतिमा हृदयमां अजयदान सहित दयानु पोषण करे . ए
विशेषार्थ-हे सर्व सुःखथी रहित एवा प्रनु ! हे सदा आनंदमय नाथ ! तमारी मूर्तिने जोइ जोश, दाणेदाणे वधता एवा शुक्ल परिणामवालो थइ, मारा ह्रदयमां विश्वास मेलवी, अव्यय, अविनाशी एवा हर्षने हुं प्राप्त थयेलो बु; एटले बीजुं वेद्यवस्तु जेमां नथी एवा परब्रह्मना स्वाद समान शांत रसना आस्वादने प्राप्त थयो बु. हे मनुष्यना हितकारी प्रन्नु ! ते तमारी प्रतिमा संप्रतिकाले दर्शन करवाथी उत्पन्न श्रयेली नावनाना उत्कर्ष कालमां अनयदान सहित एवी दया वृत्तिनुं पोषण करे . जे दया उपाधि वगर वधता गुणस्थानने योग्य अनुग्राह्य अने अनुग्राहक बनेनी योग्यतानी तुट्य वृत्ति बे. वली जे प्रतिमा विश्वने नमवा योग्य अने विशेषथी प्रकाशित . एG त्वबिंबे विधृते हृदि स्फुरति न प्रागेव रूपांतरं, त्वपे तु ततः स्मृते नुवि नवेन्नो रूपमात्रप्रथा । तस्मात्वन्मदन्नेदबुझयुदयतो नो युष्मदस्मत्पदो बेखःकिंचिदऽगोचरं तुलसति ज्योतिःपरंचिन्मयं एए अर्थ-हे प्रनु ! तमारूं बिंब हृदयमा धारण करवाथी बीजु
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