Book Title: Pratima Shatak
Author(s): Yashovijay Maharaj, Bhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text ________________ (142) राजा, एवा श्रीचंद्रप्रभ नामे सूरि थया अने तेनी पनी वादी उने जितनारा श्रीविद्याप्रभ नामे प्रख्यात सूरिथया. 2 तेपनी वाणीथी बृहस्पतिने पण जितनारा एवा ललितप्रभ नामे सूरिश्रया; अने तेनी पाट उपर भाजूषण रूप एवा विनयप्रभ नामे सूरि श्रया. 3 महीमंडलमां. विलास करती ने कीर्ति जेमनी अने जेमनी मूर्ति चारित्र शुद्धि वडे विराजित ने एवा महिमाप्रभ नामे गुणवान गुरू तेनी शुल पदवी उपर आव्या. 4 श्रीमहिमाप्रभ सूरिना चरणकमलमां नमररूप, तेमनी कृपाथी सुखी अने सतीर्थ्य शिष्यादि गणोथी युक्त एवा भावप्रभ नामे सूरि तेमनी पदवी उपर आव्या. 5 श्रीमालीना वीर वंशरूप कमलमां राजहंसरूप, रामा नामनी मातानी कुक्षिमा उत्पन्न श्रयेला, जयतसी नामना पिताना पुत्र, प्रकाशमान अने सर्व शाहुकारोमां तिलकरूप श्रीतेजसी नामे श्रेष्ठी थया. ते श्रा के घणुं प्रव्य खरची भावप्रभ सूरिना पदनो महोत्सव कोहतो.६ ते ढुं भावप्रभ नामना सूरिए, संदेपरीते पृथक रचेली आ लघुवृत्तिमांजे कां अशुद्ध होय ते विधानोए सुधारी लेवु.७ संवत् १७ए३ ना वर्षना माघ शुक्ल अष्टमी तिथि अने गुरुवारे आ उत्तम टीका संपूर्ण श्र ने छ इति श्रीमत्पूर्णिमागढीय जट्टारक श्रीनावप्रन सूरि समुख *ता प्रतिमा शतक लघुवृत्तिरिय शिष्य ज्योती रत्नस्य हेतवे / // संपूर्णा //
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