Book Title: Pratima Shatak
Author(s): Yashovijay Maharaj, Bhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 143
________________ (१७) अहो ! कलिकाल केवो बलवान ने ! पोतानी बुद्धिने रूचिकर एवा कटिपत अर्थोथी विधानोना वचनने तिरस्कार करवामां तत्पर एवा अतिगर्विष्ट पामरोना हृदयमां स्फुरेला परतंत्र शास्त्र लवने जो अमे विस्मय पामीए बीए २ सुझ पुरुषो सात नयने अनुसरता अनंग अने गंजीर एवा आप्तवाक्यने विधिवत् पदेपदे विवर्ण करे बे, ते उतां मलिन लोकोए ग्रहण करेला आकल्पित मत विषे तमेशो निश्चय कर्यो ? ३ शिष्य मूढ अने गुरुपण मूढ तेथी शास्त्र पण मूढ अझ गयुं होय एम लागे डे आप्रकारनी शंका रूप पिशाची ते मूर्ख कुमतिउनी साथे खेल कर्या करो. ५ स्फुट परिणामवाला नवीन तर्कमां सत्पुरुषोनी प्राचीन वाणीउनी गति यतीज नथी; आप्रमाण ते मूढ कुमति बबड्या करे . ते नयना विचित्र परिणामने तेमज रचनाने जाणतो नथी अने वृथा गर्वश्री ग्रस्तथइ विधानोना सर्व विसोने शोध्या करे . ५ एक लवमात्र पदने जाणनारा रागी जम पुरुषोनी पर्षदामां विधानोनुं चातुर्य शोले नही. घणा कागडाउश्री संकुल एवा पांजरामां राजहंसनुं लालन अघटित . ६ जेनामां कालाश अने धोलारानुं अंतर ने अने वाणीना गांलीर्य गुणनो मोटो नेद ने, ते हंस अने कागडाना बच्चांनी बाबतमां तफावत न जाणे तेने अने तेनी माताने धिक्कार जे. ७ वस्तु तो गमेते हो पण जिनवाणीने जाणनारा एवा पंडितने नमस्कार , के जेने वश रहेलु, सर्व पापने नाश करनार श्री जैनशासन जयवंत वर्ते . ८

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