Book Title: Pratima Shatak
Author(s): Yashovijay Maharaj, Bhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(११ए) शस्त्र पोतानो घात करे एवो न्याय थयो. एवीरीते आ बीजोजंग सिद्ध को. ०६
हवे त्रीजा नांगाविषे कहे जे. जावो धर्मगतः क्रियेतरगतेत्यत्रापि नंगे कथं, मिश्रत्वं तमधर्ममेव मुनयो नावानुरोधादिः । जक्त्याईत्प्रतिमार्चनं कृतवतां न स्पृश्यमानः पुन,
विश्चित्तमिवाग्रहाविलधियां पापेन संलयते॥७॥ __ अर्थ-त्रीजो नांगो जे अधर्मगतनाव अने धर्मगत क्रिया, तेमांपण मिश्रपणुं केवीरीते घटे ? कारणके विधान लोको लावने लश्ने तेने अधर्म कहे जे. जेम पुराग्रहथी मलिन बुद्धिवाला पुरुषोनुं चित्त जेवं पापना स्पर्शवालु जणाय, तेवू नक्ति करनारा माणसनुं चित्त पापना स्पर्शवाळु जणातुं नथी, तेवीजरीते नक्तिवडे अर्हतनी प्रतिमानी पूजा करता एवा नव्यप्राणीउनोजाव पापना स्पर्शवालो थतो नथी. ७
विशेषार्थ-त्रीजो नांगो जे अधर्मगत नाव अने धर्मगत क्रिया-तेमां पण मिश्रपणुं शीरीते घटे ? कारणके लावना अनुरोधथी मुनिजनो ते अधर्मज कहे जे. कारणके उष्टनाव पूर्वक विहित एवी क्रियानुं पण बहु प्रत्यवायने लीधे अधर्मपणुं ले अने तेश्रीज निन्हव विगेरेनुं जे निग्रंथ रूप , ते पुरंत संसारनुं हेतु रूप होवाथी तेमां अधर्मपणुं बे. वली नक्ति तथा विधिवडे अर्हत लगवंतनी प्रतिमानी पूजा करतां एवा जव्य प्राणीनो नाव पापथी स्पर्श श्रयेलो जोवामां आवतो नथी.
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