Book Title: Pratima Shatak
Author(s): Yashovijay Maharaj, Bhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 137
________________ (११) विशेषार्थ-चोथो नांगोजे धर्मगता क्रिया अने अधर्मगता क्रिया, ते बंने क्रिया परस्पर विरोधने पामे बे. कारणके जिन्न विषय वाली बे क्रिया एक समये निषिद्ध थाय . तेमज ते बने क्रिया प्रकृतस्थले एटले कोइपण अव्यस्तवने स्थाने न थाय. तेथी चोथो लांगो पण वृथा ने, अर्थात् मिश्रपदने समर्थ करवानो ते वृथा उपक्रम . अहिं शंका करे के शुद्ध अशुधनो योग शास्त्रोमां कथन करेल , तो त्यां आ चोथा नांगानो अवकाश केमन थाय ? ते कहे . अविधिवडे जे जिन पूजनादि शुद्ध अशुद्ध योग कथन करेलो , ते योग व्यवहार दर्शन रूप मे, तेथी ते बंनेना मिश्रणथी न थाय, कारणके शुद्ध अशुधनो विरोध श्रावे. तेथी करीने मिश्रपदने जलांजलि आपवामां आवता अर्थात् मिश्रपदने तोडी पाड्यो अने एप्रमाणे चोथा नांगानुं निराकरण कर्यु. ७७ ___ हवे निश्चय नयश्री शुष अशुधनो योग अरूपमां नथी ते कहे जे. नावडव्यतया द्विधा परिणतिः प्रस्पंदरूपा स्मृता, योगास्तत्र तृतीयराश्यऽकथनादायेषु नो मिश्रिता। नैवांत्येष्वपि निश्चयादिति विषोजारः कथं ते मो, निष्पीता किमु न दमाश्रमणगीः सन्नाष्यसिंधो सुधा॥ अर्थ-परिणाम अने तेनी स्फुरणा रूप योग व्य अने नाव बे प्रकारना कहेला . तेमां नाव योगोमां त्रीजी राशिना न कहेवाथी ते परिणाम मिश्रित थता नथी, तेमज अव्य योगोमां

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