Book Title: Pratima Shatak
Author(s): Yashovijay Maharaj, Bhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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( ११५ )
केवलज्ञानसुधी देशविर तिपणानी संभावना करे बे. यथा "जावंचणं एसजीवे एयश्वेयइ तावचणं आरंभ इति " एवीरीते saraai मिश्रता केवली मां पण थाय. तेथी पाशचंद्र बाती कूटी शोक करे तेने कोणवारे. प्रमाणे मिश्रपणुं नथी एम
सिद्धांत बे. ८३
हवे वादीना प्रसंगनुं समाधान करे बे. वाहिन्युत्तरणादिकेपि यतनानागे विधिर्न क्रिया, मागे प्राप्तविधेयता हि गदितां तंत्रे खिलैस्तांत्रिकैः । हिंसा न व्यवहारतश्च गृहिवत् साधोरितीष्टं तु नो मिश्रत्वं ननु नोमते किमिह तद्दोषस्य संकीर्त्तनं ॥ ८४॥
अर्थ - नदी उतरवा विगेरे कर्ममां यतनाना नागविषे विधि यामां विधि नथी कारके सर्व तांत्रिकमत वालार्जए तंत्रशास्त्रमां प्राप्तनी प्राप्तिमां विधि कथन करेलो बे छाने व्यवहार नयथी गृहस्थनी जेम साधुने नदी उतरवा विगेरेनी हिंसा न लागे, तेथीते मिश्रपणुं इच्छेलुं नथी. तेथी थाय ? अर्थात् न थाय. ८४
हिंसा मिश्रणनो अभाव बे माटे मारा मतमां शुं ते दोषनुं कीर्त्तन
विशेषार्थ - हवे वादी जे पोताना मतने समर्थ करे बे, ते कहे बे- नदी उतरवा विगेरे कर्ममां यतनाना जाग विषेविधि बे का - राके, ते प्राप्त नथी ने क्रियानागमां विधि नथी कारणके, सर्व तंत्र मतवाला विद्वानोए तंत्रशास्त्रमां प्राप्त पणामांविधि कथन करेलो बे. मीमांसामां पण लखे बे के " प्राप्त प्रापणं
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