Book Title: Pratima Shatak
Author(s): Yashovijay Maharaj, Bhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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.. (११५) किं चाकेवलिनं विचार्यसमये अव्याश्रयं जाषितं, शुकं धर्ममपश्यतस्तनुधियः शोकः कथं गछति ॥३॥
अर्थ-धर्म स्वनावी अध्यवसायनी साथे मलेली पापक्रियाने आचरता एवा चारित्रधारी नाव साधुउने अन्यथा रीते नदी उतरवा विगेरेना अपवाद मार्गमां मिश्रपणुं थाय अने वली सिशांतमां केवली सुधी कहेलु जे व्याश्रय वचन तेने विचारी शुद्ध धर्मने नहीं जोता.एवा तुझ बुद्धिवाला पुरुषने श्रयेलो शोक शीरीते मटे अर्थात् मटेज नही. ७३ । - विशेषार्थ-अपाप एटले धर्मस्वनावी नाव जे पुष्टालंबनना अध्यवसाय रुप तेनीसाथे मलेली जे नदी उतरवा रुप पापक्रियाने आचरता एवा चारित्रधारी नाव साधुग्ने अन्यथा रीते एटले कहेला स्वरूपथी आश्रवपणाने अनिमत एवा - चरणने अधर्मपणुं कहेवामां नदी उतरवा विगेरेना अपवाद मार्गमा मिश्रपणुं थाय. गनित अर्थ एवो के, जे अहिं मिश्रपणुं ने ते मिश्रपदना आश्रयवालुं जाणवू ते परनेपण इष्टनश्री कारणके, साधुउने तो एक धर्मपदज लेवानो , तेथी स्वरूपे करी धर्मनावमां सावधक्रियानुं जे मिश्रण ते व्यस्तव . वली सिद्धांतमां केवलीपर्यंत कहेलुं जे व्याश्रय वचन तेने विचारी शुधर्मने नहीं जोता एवा तु बुद्धिवाला पुरुषने श्रयेलो शोक शीरीते मटे ? अर्थात् धमपदना स्थाननो उछेद थवाथी श्रयेलो शोक कोशीते पण न जाय. तेथी परमसुंदरमुनि अयोगी केवलीमांज सर्वथा संवर रहेलो ने एम सूक्ष्मपणे जाणी
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