Book Title: Pratima Shatak
Author(s): Yashovijay Maharaj, Bhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text ________________
(एए) हंतैवं यतिधर्मपौषधमुखश्राकक्रियादेविधे, दौर्लन्येन तदस्ति किं तवन यत् स्यादिजालोपमं७०
अर्थ-कदि ते प्रतिमा वंदवायोग्य नले हो परंतु ते प्रतिमा जो विधियी प्रतिष्ठा करेली होय तोज सर्वने वंदन करवा योग्य ने अने तेवो प्रतिष्ठा विधि श्रा उषम कालने विषे विरल , तेमज प्रतिमा संबंधी प्रतिष्ठा, वंदन विगेरे इंजजालना जेवू . आ शंकानो उत्तर आपे जे. जो ते सर्वे इंजाल जे, होय तो, आ सर्व, चारित्र धर्म, पौषध विगेरे श्रावकोनी क्रिया विगेरे पण विधिपूर्वक थवी उर्लन , तेश्री तेपण तमारे इंजजाल जेवू जाणवू. ७०
लावार्थ-कदि ते प्रतिमा वंदवा योग्य नले हो, कारणके सैकडो अक्षरोधी तेनी व्यवस्था करवामां आवेली, परंतु ते प्रतिमा विधिपूर्वक करवामां आवेली बे के केम? एम शोधक वृत्ति थाय ने अर्थात् विधिए प्रतिष्ठा करेली प्रतिमाने सर्वलोको इछे , कारणके सारीरीते जावना करेली प्रतिमाने नावग्रामपणाश्री कथन करेली . ते प्रतिमानी प्रतिष्ठा करवानो विधि प्राये करीने आ कालमां विरल डे, कारणके आधुनिक ( उषमकाल ) समयना लोको प्राये करीने अविधिमां प्रवर्ते , ए प्रत्यद सिम . वली प्रतिमासंबंधी सर्व प्रतिष्ठा वंदना विगेरे इंजजालना जेवू , कारणके मोटो आडंबर असत्यनुं आलंबन करीने रहे . श्रा शंकानो उत्तर आपे . __जो एम होय तो वर्तमान कालमा यतिधर्म-मुनिनो आचार देश विरतिधर्म-श्रावकोने पर्वने दिवसे करवानी पौषध विगेरे
Loading... Page Navigation 1 ... 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158