Book Title: Pratima Shatak
Author(s): Yashovijay Maharaj, Bhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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( ११० )
ते पक्षी आम्रमंजरीना स्वादथी मधुरकंठ प्राप्त करी काकली स्वरना टोकाराथी युवान पुरुषोना मनने मदवालुं करे बे. वली जेम स्वर्गपति इंद्र चंदनवृदोनी घटाथी सुशोजित एवी नंदनवननी भूमिने तजे नही, कारणके ते इंद्र पोतानी प्रियाना वि रहतापने नंदनवनना सौंदर्यनो चमत्कार जोइ जुली जाय बे. तेम डुं श्री तीर्थंकर जगवंतनी अलौकिक शांत रसमय प्रतिमाने मारा ह्रदयमांथी क्षणवार पण बोडीश नहीं. ७७
वली ग्रंथकार जव्य प्राणीने उपदेश करता थका जगवंतनी प्रतिमानी स्तुति करे बे.
मोहोद्दामदवानलप्रशमने पाथोदवृष्टिः शम, स्रोतो निर्करिणी समीहितविधौ कल्पवलिः सतां । संसार प्रबलांधकारमथने मार्तंडचंड युति, जैनी मूर्तिरुपास्यतां शिवसुखे जव्याः पिपासास्तिचेत्
अर्थ- हे जव्य प्राणी, जो तमारे मोक्ष सुख प्राप्त करवानी होयतो तमे श्री तीर्थंकर जगवंतनी प्रतिमानी उपासना करो. जे प्रतिमा मोहरूपी दावानलने शमाववामां मेघवृष्टिरूप बे, जे शमतारूप प्रवाहनी नदी बे, जे सत्पुरुषोने वांबित - पवामां कल्पलता बे ने जे संसाररूपी उग्र अंधकारने नाश करवामां सूर्यनी तीव्र कान्तिरूप बे. ८०
अर्थ - हे जन्य प्राणी, जो तमारे मोहनुं अक्षय सुख प्राप्त करवानी प्रबल हा होयतो तमे श्रीतीर्थंकर भगवंतनी अपरि
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