Book Title: Pratima Shatak
Author(s): Yashovijay Maharaj, Bhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 112
________________ ( ए६ ) श्रावको श्री जिनराजानी पूजा करी, जाणे पोताना जाग्यना - कुरा प्रगट थया होय तेम तिलक लोकोने बतावे बे. १. वलीश्रानंदमांतरमहो समुदाहरंती, रोमांचिते वपुषि सस्पृहमुल्लसंती | पुंसां प्रकाशयति पुण्यरमासमाधि, सौनाग्यमर्चनकृतां निभृता दृगेव ॥ २ ॥ जावार्थ - जिनेश्वर जगवाननी पूजा करनारा श्रावकोनी हष्टि अंतरा आनंद प्रगट करती ने रोमांचित शरीरमां स्पृहाथी उल्लास पामती थकी तेमनी पुण्यलक्ष्मीना सौभाग्यने प्रकाशित करे वे. २. वली - स्पृशति तिलकशून्यं नैव लक्ष्मीर्ललाटं, मृतसुकृतमिव श्रीः शौचसंस्कारहीनं । कलितजजनानां वल्कलान्येव वस्त्राएयपि च शिरसि शुक्लं उत्रमप्युप्रजारः ॥३॥ नावार्थ- सुकृत तथा शौचसंस्कारथी रहित पुरुषनी जेम, तिलकरहित ललाटने लक्ष्मी स्पर्श करती नथी. जजन तिलकरहित पुरुषोने वस्त्रो वल्कलरूप बे ने मस्तक उपर रहेलुं श्वेत पत्र पण मोटा बोजारूप बे ॥ ३ ॥ - लुंपकोनी मिथ्या कल्पना परास्त करता, पतिमापूजन निदान लाजमय वे, ते दर्शावे बे.

Loading...

Page Navigation
1 ... 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158