Book Title: Pratima Shatak
Author(s): Yashovijay Maharaj, Bhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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करवो, नहीं तो एवो विग्रह करवो के सु एटले सारि ने ता लक्ष्मी जेमां ते सुत कहेवाय. तेवो नीवृत् एटले देश ते सुतनीवृत् कहेवाय. श्रहिं सामानाधिकरण विशेषण प्रमाणे व्याख्या करवी. श्री हेमचंद्र कोषमां लखेटे के " तासा श्रीः कमलेंदिरा इत्यादि. ए पुत्रोने देशोनी वेर्हेचणमां ने प्रजाने शिल्पादि शिक्षा बताववामां अधिकारी एवा जगवंते अति श्रेष्ठ अंश को बे. जे अंश मात्स्य न्यायवडे अन्यायनी प्रवृत्ति थवा रूप बहु दोषने वारनारो बे, छाने बीजो अंश जे आनुषंगिक हिंसा - रूप हतो तेनी उपेक्षा करीबे. श्र निर्देश लक्षण न्याय पण दुष्टमत अर्थात् व्यस्तवने न स्वीकारनार मत, तेरूपी वृक्षना समूहने विषे अतिशय प्रबल एवो दावानलरूप बे, कारण के जमार्गे चालनार दुर्मतिने ते जस्म करनारो बे.
हवे प्रमाणपूर्वक श्री महानीशीथ सूत्रना अक्षरो दर्शावे . किं योग्यत्वमकृत्स्न संयमवतां पूजासु पूज्या जगुः, श्राद्धानां न महानिशीथसमये जक्त्या त्रिलोकी गुरोः । नंदी दर्शितसूत्रवृंद विदितप्रामाण्यमुद्राभृतो, निद्राणेषु पतंति डिंडमडमत्कारा श्वैता गिरः ॥ ४० ॥
- श्री महानिशीथ सूत्र ( सिद्धांत ) मां पूज्य गणधरोए देशविरति श्रावको नक्तिवडे त्रण भुवनना गुरू श्रीतीर्थकरने पुष्पादिकथी पूजा करवानी योग्यता शुं नथी कही ? अर्थात् कहेली बे. श्रीनंदी सूत्रमां दर्शावेला सूत्रवृंदमां प्रसिद्ध प्र