Book Title: Pratima Shatak
Author(s): Yashovijay Maharaj, Bhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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( ए) तमे कयुं ते सत्य , परंतु समकित गुणनी वृद्धि करवाअर्थे, उत्तम देत्रमा धन वापरवाने अधिकारी एवा श्रावकने आ पूजा मोटो गुण करे ये. कारणके बीजा हेतुथी का मुख्य हेतु निफल थतो नश्री. ५६
विशेषार्थ-जो सत्वशुद्धि करवानी श्वा राखता होतो, तमारे स्वरूपथी सावद्य एवी पूजा करवानुं शुं काम ? अर्थात् तेवी पूजाथी सर्यु. कारणके निरवद्य एवा सामायिक विगेरे अनुष्ठानश्री नावआपत्तिने निवारण करनार मोटो गुण सिद्ध थाय बे. कारण के सामायिक, पौषध विगेरे सत्वशुधिना परम साधनो के. तेना उत्तरमांकहे के, ते तमारू कथन सत्यने, परंतु जे श्रावक दर्शनगुणना नहासने माटे अर्थात् समकितगुणोनी वृधिने माटे उत्तम देत्रमा धन वापरवाने अधिकारी श्रयो होय, ते श्रावकने आ पूजा मोटो गुण करे बे. कारणके अधिकारी विशेषथी कारण विशेष श्राय जे. तेथी श्रावकने व्यस्तव हस्तिना शरीर जेवु अने नावस्तव जे अमुक काल सुधी सामायिकरूप में, ते तेमने हस्तिना नेत्ररूप बे. तेथी वीजा हेतुने ध्यानमां देतां मुख्य हेतु निष्फल अतो नश्री; तेथी सिद्ध थयु के दान, सामायिक अने देवपूजा, श्रावकने अमुक हेतुने लश्ने करवा योग्य ने अने तेम करतां बिलकुल दोष लागतो नश्री. ५६ । __ हवे चैत्यपूजामां आरंजनी शंका करवाश्री जे दोषो लागे ते कहे. अन्यारंजवतो जिनार्चन विधावारंनशंकाभृतो, मोदः शासननिंदनंच विलयो बोधेश्च दोषाः स्मृताः।