Book Title: Pratima Shatak
Author(s): Yashovijay Maharaj, Bhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(६५) थन ने ते सर्व प्रतिमापूजन ने सूचवनारूं नयी ? अर्थात् ज. कारण के अतिशय उत्कृष्टनी स्तुति दीनना मुकाबलानी साथे करवी ते योग्य नथी परंतु उत्कृष्टना मुकाबला साथे करवी योग्य ने, अने तेज स्तुतिगणाय. जेम सामान्य माणसथी चक्रवर्तीनी अधिकता कहेवी ते स्तुति नथी, परंतु महान् राजाथी चक्रवर्तीनी अधिकता कहेवी ते तेनी स्तुति गणाय. ४१
आ अमारूं कथन श्रीमहानिशीथ सूत्रनुं प्रमाण रूप , ते सिधकरी कुमतियोने दूषण श्रापी कहेजे. प्रमाण्यं न महानिशीथसमये प्राचामपीत्यप्रियं, यत्तुर्याध्ययनेन तत्परिमितेः केषांचिदालापकैः । वृद्धास्त्वाहुरिदं न सातिशयमित्याशंकनीयं वचित्, तत्किं पाप तवापदः परगिरांप्रामाण्यतोनोदिताः॥४॥
अर्थ-श्रीमदानिशीथ सूत्रमा प्राचीन एवा तमारा संप्रदायवालानी प्रमाणता नथी अने चोथा अध्ययनमा केटलाएक बे त्रण श्राचार्योना आलापक , तेपण प्रमाण गणाया नहीं. श्रा वचन घणुं अप्रिय बे. कारणके वृयो एम कहे के, श्रा महानिशीथ सूत्र अति गंन्नीर अर्थवालुंजे, तेथी तेमां को स्थले शं का करवी नहीं. माटे हे पापी ! ते उत्कृष्ट वाणीवाला अमारा संप्रदायक शुद्ध शास्त्रना प्रमाणथी तने आपत्तिठनो उदय शुं नहीं थाय ? अर्थात् उदय थशेज. ४२ विशेषार्थ-नश्री. ४२