Book Title: Pratima Shatak
Author(s): Yashovijay Maharaj, Bhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(३६) देवानां ननु जक्तिकृत्यमपि न श्लाघ्यं यतीनां यतः, सूर्याजः कृतनृत्यदर्शनरुचिप्रश्नोईतानाहतः । हंतेयं जडचातुरी गुरुकुले कुत्र त्वया शिक्षिता, सर्वत्रापि हि पंडितैरनुमतं येनानिषिकं स्मृतं ॥ १७।। __ अर्थ-देवताउँनु नक्तिकृत्य मुनियोने अनुमोदन करवा योग्य नथी, कारण के श्री महावीर लगवंते नृत्य करवानी रुचि श्रवाश्री प्रश्न करनारा सूर्याजदेवने आदर आप्यो नहतो. दीलगीरी के के हे जम! आवी कल्पना करवानी चातुरी तुं कया गुरुकुलमां रहीने शीख्योबु ? के जे कृत्य सर्व संप्रदायमां पंडितोए अनिषिद्ध अने अनुमत करेलुं .
विशेषार्थ-देवताउँनुनक्तिकृत्य जे प्रतिमा पूजनादि, ते मुनियोने अनुमोदन करवायोग्य नथी, तेथी ते धर्म नथी. वंदनादि जो अनुमोदन करवायोग्य होय तोज धर्म गणाय. " पोराणमेयं सूर्याला” ए गाथार्थमां कहेलु के के चारे निकायना देवताः अर्हतप्रनुने वंदना करी पोतानां नाम, गोत्र संललावेने, इत्यादि ते स्थले जोर लेवु. वली तुं कहे डे के “ सूर्यानदेवे श्री महावीर प्रनुपासे नृत्य करवा प्रश्न को तेना उत्तरमां लगवंते तेने आदर करेलो नथी” अहिं उत्तरमात्र एज ने के आवी चातुरी हे जड! तुं कया गुरुकुलमां रहीने शिख्यो? जेथी तुं आ मुनियोनी अनुमोदनानो निषेध करे, कारण के सर्व संप्रदायमां तेविष पंडीतोए निषेध कर्यो नथी, अने तेनी अनुमोदना करवी कहेली . १७