Book Title: Pratima Shatak
Author(s): Yashovijay Maharaj, Bhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(१३) गिनी साथे एटले वीजा निदेपने निरूपण करनार नावनिदेपनी साथे ते बंने नाम अने स्थापनानो संबंध शुं सरखो ने के तेमां परस्पर कांक विषमपणुं ? उत्तर के एकमां वाच्यवाचक नाव अने बीजामां स्थाप्यस्थापक नाव , तेटलो अविशेष बे. श्रा युक्तिथी हवे प्रतिवादीने आक्षेप करे . तो हे जडमति ! तारे ते बंने नाम अने स्थापनाने अविशेषपणे वंदना करवी, कारण के बंनेमां लगवंतना अध्यात्म विषे विशेष तफावत नथी. अने जो अंतरंग प्रतीतिनो अनाव होय तो ते बनेनो त्याग करवो. आ युक्तिथी तेने प्रतिमानो अंगीकार करवो पडे अने ते तेने अनिष्ट श्रयुं तेथी ते लुंपक प्रतिवादीना मुख उपर मषीनो कुचडो लाग्यो अर्थात् मुख उपर मलिनता आवीगइ, एवो पण लावार्थ निकले के ते मौन रह्यो. (अहिं असंबंधमां संबंधरूप अतिशयोक्ति अलंकार थाय ) वली एवो पण तर्क थाय के जे लावनिक्षेप ने ते अवंद्य स्थापना निदेपनो प्रतियोगी थाय के अवंद्य नाम निदेपनो प्रतियोगी थाय; आवा तर्कनुं जे व्यधिकरण ( असदृश) पणुं ते पण उडी जाय . ___ एवी रीते युक्तिथी प्रतिमा विगेरेनो निर्णय करी, हवे तेना विराधक पुरुषोनुं उपहास्य अने आराधक पुरुषोनी स्तुति करे . स्वांतं ध्वांतमयं मुखं विषमयं दृग धूमधारामयी, तेषां यैर्न नता स्तुता न नगवन्मूर्तिर्न वा प्रेदिता। देवैश्चारणपुंगवैः सहृदयैरानंदितैर्वदिता, ये त्वेनां समुपासते कृतधियस्तेषां पवित्रं जनुः ॥५॥