Book Title: Prakrit Vyakarana
Author(s): Hemchandracharya, K V Apte
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 9
________________ यह है कि संस्कृतसे भिन्नत्व दिखानेके लिए प्राकृत शब्द प्रयुक्त किया जाने लगा। संस्कृत शब्द सम् + क धातुका कर्मणि भूतकालवाचक धातुसाधित विशेषण है और उसका अर्थ है 'संस्कारित किया हुआ' वचन या भाषा । प्राकृत शब्द भी प्र+आ+ धातु का कर्मणि भूतकालवाचक धातुसाधित विशेषण है, और उसका अर्थ है, 'बहुत (प्र) विरुद्ध अथवा भिन्न (आ) किया अथवा हुआ,वचन किंवा भाषा । मतलब यह कि संस्कृतसे भिन्न स्वरूप होनेवाली भाषाओंके पृथक्त्व दिखानेके लिए प्राकृत शन्द प्रचारमें आया। संक्षेप में, प्राकृत यानी संस्कृतसे भिन्न (पूर्वकालीन) भाषा । प्राकृत शब्दसे सूचित होनेवाली भाषाएं प्राकृत शब्दसे कौनसी भाषाएँ सूचित होती हैं इस बात में भारतीय प्राकृत वेयाकरण और आलंकारिक इनका एक मत नहीं है:---- (अ) प्राकृत ( माहाराष्ट्री), शौरसेमी, मागधी और पंशाची इन चार प्राकृतोंका विवेचन बररुचि करता है। (मा) माहाराष्ट्री, शौरसेनी, मागधी, आवन्तिका और प्राच्या इन पांच प्राकृतोंका निर्देश मृच्छकटिक नाटकका टीकाकार करता है। (इ) प्राकृत ( माहाराष्ट्री), शौरसेनी, मागधी, पंशादी, चूलिका पेशाची और अपभ्रंश ये छः प्राकृतें लक्ष्मीधर कहता है । (ई) मागधी अवन्तिजा, प्राच्या, शौरसेनी, अर्धमागधी, बाह्रीका और दाक्षिणात्या ऐसी सात प्राकृत भाषाओंका निर्देश भरत ने किया है । (उ) प्राकृत ( माहाराष्ट्री ), आर्ध, शौरसेनी, मागधी, पंशाची, धूलिका शाची और अपभ्रंश इन सात भाषाओंकी चर्चा हेमचन्द्र करता है । (ऊ) माहाराष्ट्री, शौरसेनी, प्राच्या, आवन्ती, मागधी, शाकारी, चाण्डाली, शाबरी, टक्कदेशीया, अपभ्रंश ( और उसके प्रकार ), पैशाची ( और उसके प्रकार ) पुरुषोत्तमदेवके प्राकृतानुशासनमें दिखाई देते हैं । (ए) माकंडेय सोलह प्राकृतोंका विवरण करता है। सर्वप्रथम वह प्राक्तके भाषा, विभाषा, अपभ्रंश और पैशाच ये चार विभाग करना है और इन विभागों में वह निम्नानुसार प्राकृतें कहता है:-(१) भाषा:--माहाराष्ट्री, शौरसेनी, प्राच्या, आवन्ती और मागधी । (२) विभाषाः-शाकारी, चाण्डाली, शाबरी, आभोरिका और टाक्की । (३) अपभ्रंशः--नागर, वाचड ओर उपनागर । (४) पैशाच-कैकेय, शौरसेम और पांचाल । प्रधान प्राकृत भाषाएँ ऊपर दी गई प्राकृत भाषाओंके बारेमें भी यह बात लक्षणीय है कि कुछ भारतीय प्राकृत व्याकरणकार° कुछ प्राकृतोंको अन्य प्राकृतोंका मिश्रण अथवा उपप्रकार समझते हैं । उदा०-आबन्ती ( = अवन्तिजा, आवन्तिका ) माहाराष्ट्री ओर शौरसेनीके संकटसे बनी है। प्राच्या भाषाकी सिद्धि शौरसेनीसे ही हुई है। ‘र का ल होना' यह फर्क छोड़ दे, तो बालीकी १३भाषा आवन्ती भाषामें हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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