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जल भरी संपुट पात्रमां युगलिक नर पूजंत । ऋषभ चरण अंगूठड़, दायक भव जल अन्त ॥ १ ॥ दोनों पांव के अंगूठों का पूजन विचरया देश विदेश । पूजो जानु नरेश ||२||
दोनों गोंड़ों का पूजन ||
जानुं बलेका-उस्सग्ग रह्या, खड़ा खड़ा केवल लह्या,
लोकांतिक वचनें करी, करकान्डे प्रभू पूजना,
बरस्या वरसी दान । पूजो भवि बहुमांन ॥ ३ ॥ हाथों का पूजन
वीर्य अनन्त ।
खंघ महन्त ॥४॥
कन्धों का
सिद्ध शिला गुण ऊजली, लोंकांतिक भगवन्त । बसिया तिण कारण सही, सिद्ध शिखा पूजन्त ॥ ॥ शिखा का तीर्थकर पद पुण्य थी, त्रिभुवन जन सेवंत । त्रिभुवन तिलक समा प्रभू, भाल तिलक जयवंत ||८||
ललाट का
मांन गयुंदोय अंशथी, देखो भुजाबले भवजल तरया, पूजो
पूजन ॥
पूजन ।
पूजन । सोल पहर दई देशना, कंठ विवर वरतूल । मधुर धुनी सुरनर सुर्णे, तिमगले तिलक अमूल ||७|| कण्ठों का पूजन