Book Title: Prachin Stavan Jyoti
Author(s): Divya Darshan Prakashan
Publisher: Divya Darshan Prakashan
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[ १३० ]
(१५) श्री धर्मनाथ जिन स्तुति धरम धरम धोरी, कर्मना पास तोरी। केवल श्री जोरी, जेह चोरे न चोरी ॥ दर्शन मद छोरी, जाय भाग्या सटोरी। नमे सुर नर कोरी, ते वरे सिद्धि गोरी ॥१॥ (१६) श्री शांतिनाथ जिन स्तुति
[१] वंदो जिन शांति, जास सोवन कांति, टाले भवभ्रांति, मोह मिथ्यात्व शांति, द्रव्य भाव अरि पांति, तास करता निकांति, धरता मन खांति, शोक संताप वांति ॥१॥
शांति जिनेश्वर समरीये, जेनी अचिरा माय; विश्वसेन कुल उपन्या. मृग लंछन पाय; गजपुर नगरीनो धणी कंचन वरणी छे काय चालीश धनुषनी देहडी लाख वरसनु आय ॥१॥
शांति सुहंकर साहिबो, संयम अवधारे सुमित्रने धरे पारण भव पार उतारे विचरंता अवनी तले तप उग्र विहारे ज्ञान ध्यान एक तानथी तिर्यचने तारे ॥१॥

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