Book Title: Prachin Stavan Jyoti
Author(s): Divya Darshan Prakashan
Publisher: Divya Darshan Prakashan

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Page 165
________________ [ १४४ ] वीर प्रभुना चरणने प्रणमी विनयथी उच्चरु, मलजो भवोभवताहरु शासन त्रिपुटी निर्मलु, आराधना दूरे रहो पण राग शासननो मने, भव सिन्धु पार उतारशे एह निश्चय मुज मने, 01 जे द्रष्टि प्रभु दर्शन करे ते द्रष्टिने पण धन्य छे; जे जीभ जिनवरने स्तवे ते जीभने पण धन्य छे; पीये मुदा वाणी सुधा ते कर्ण युगने धन्य छे; तुज नाम मंत्र विशद घरे, ते हृदयने नित धन्य छे; -- , जे प्रभुना अवतारथी अवनिमां, शांति बधे व्यापती, जे प्रभुनी सुप्रसन्नने अमी भरी द्रष्टि दुःखो कापती, जे प्रभु ए भर यौवने व्रत ग्रही, त्यागी बघी अंगना ते तारक जिनदेवना चरणमां, हो जो सदा वंदना 10 सुण्या हशे पूज्या हशे निरख्या हशे पण को क्षणे हे जगत बन्धु चित्तमां घार्या नहीं भक्ति पणे, जनम्यो प्रभु ते कारणे दुःख पात्र हुँ संसारमा, हा भक्ति ते फलती नथी जे भाव शून्याचारमां

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