Book Title: Prachin Stavan Jyoti
Author(s): Divya Darshan Prakashan
Publisher: Divya Darshan Prakashan
View full book text
________________
[ १४२ ]
कोयल टहुँक रही मधुबन में, पार्श्व प्रभुजी बसो मेरे दिल में काशी देश बनारसी नगरी, जन्म लियो प्रभु क्षत्रिय कुल में बालपने प्रभु अदभुत ज्ञानी, सुरपति नाग कियो एक छिन में दिक्षा ले प्रमु विचरन लागे, भीज गये संजम एक रंग में सम्मत शिखर प्रभु मुक्ति पधारे, प्रभुजी की महिमा तीन भुवन उदयरतन की येही अरज है, दिल अटक्यो तेरे चरन - कमल में
में
.
101
प्रभु आप अवीचल नामी छो गुण गमी छो विशरामी छो ने अक्षय शुखना घामी छो अमने अजय सुख आपोने । प्रभु० आ भववनमां भमतां भमतां बहु काल गयो रमता रमतां अंते आव्यो तमने नमतां अमने अभय सुख आपोनो । प्रभु आ नाव हमारु भरदरीये तुं तारे तो स्हेजे तरीये बीजे क्या जइने करगरीओ अमने अक्षय सुख आपोने । प्रभु० तुज मुरती छे मोहनगारी भवभवना संकट हरनारी हे श्याम जीवन आप सुधारी अमने अक्षय सुख आपोने । प्रभु०
बधाई
दीनानाथजी बधाई बाजे छे, मारा प्रभुनी बधाई बाजे छे, शरणाई सुर नोबत बाजे, ओर घनननन गाजे छे । मारा० ॥१॥ इन्द्राणी मिल मंगल गावे, मोतीयोना चोक पुरावे छे । मा० ॥२ सेवक प्रभुजीशं अरज करत है, चरणोनी सेवा प्यारी लागे छे | मारा० ||३||

Page Navigation
1 ... 161 162 163 164 165 166