Book Title: Prachin Stavan Jyoti
Author(s): Divya Darshan Prakashan
Publisher: Divya Darshan Prakashan

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Page 159
________________ [ १३८ ] तारु रुप अनुपम निरखी विकसे अंतरभाव अमारा रे माराभव अनंतनो बंघ ज तुट्यो भ्रमणां मांगी अमारी रे ताराचरण कमलनी सेवा पामी भकते प्रभुगुण गाया रे आज मारा देशसरमां मोतीडे मेह वरस्या रे ताहरे खोट खजाने को नही दीजी वांछीत दानो रे करुणा नजरे प्रभुजी तणी वाधे सेवक वानो रे देशोतो तुमही भला बीजा तो नवि जाचं रे वाचक जश कहे साइंशु फलसे मे मुज साचुं रे संभव जिनवर विनती वाला चोवीस जिणंज शुं विनती श्री तीरथे ध्यावो गुण मावो पचरंगी रयण मोलावो रे थालभरी भरी भोती डे वघावो गुण अनंता दील लावो रे श्री तीरथ पद पुजो गुणी जन जेहथी तरीओ तीरथ रे भलं थयुं ने में प्रभु गुण गाया रसनानो रस लीघोरे रावण राये नाटक की, अष्टापद गीरी उपर रे थैया थैया नाटक करतां तीर्थकर पद बांध्यु रे देवचंद कहेमारा मननां सकल मनोरथ सीध्या रे भलं थयु ने में प्रभु गुण गाया

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