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( २० ) नजर टुंक महेर करके करके, दिखादोगे तो क्या होगा अनुपम रुप हे प्रभु जी, बतादोगे तो क्या होगा ॥१॥ प्रभु तुम दीन के रक्षक, करो मुज दीन की रक्षा चोराशी लाख की फेरी, मिटा दोगे तो क्या होगा ॥२॥ अनादि काल से भमतां, नहीं अभी अंत आया है शरण अब आपका लीना, हटा दोगे तो क्या होगा ॥३॥ अनादि काल से रुलीयां, बन्यो मिट्टी, कभी पानी तेऊ वाऊ हरी काया, बचा दोगे तो क्या होगा ॥४॥ बीती चउ जाती पंचेन्द्रि-पशु परवश दुःख पाया अमर नर नारकी रुपे, छंडा दोगे तो क्या होगा ॥५॥ ईसी संसार सागर में, मेरी प्रभु डुबती नैया करी करुणा किनारे पर, लगा दोगे तो क्या होगा ॥६॥ करो प्रभु पार भवोदधि से-निजातम संपदा दीजे सेवक को अपना वल्लभ बना दोगे तो क्या होगा ॥७॥
(२१) मेरी अर्जी उपर प्रभु ध्यान धरो, मेरे दिले के ये दर्द तमाम हरो, कभी आधि कभी व्याधी, कभी उपाधी आती है, सेवा जिनराज की सांची, तीनों की जड़ उड़ाती है,
- मेरी लाख चौरासी की पीर हरो ।। मे• १ ॥ ज्ञान चाहुँ ध्यान चाहुँ, मस्त आतम भाव से,