Book Title: Prachin Stavan Jyoti
Author(s): Divya Darshan Prakashan
Publisher: Divya Darshan Prakashan

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Page 147
________________ [ १२६ ] (२) प्रह ऊठी वंदु ऋषभदेव गुणवंत, प्रभु बेठा सोहे समवसरण भगवंत, त्रण छत्र बिराजे चामर ढाले इन्द्र जिनना गुण गावे सुरनर नारीना वृद ॥ १॥ (३) आदिजिनवर राया, जास सोवन काया, मरुदेवी माया, धोरी लंछन पाया जगज स्थिति निपाया, शुद्ध चारित्र पाया केवल सिरि राया, मोक्ष नगरे सिधाया ॥ १ ॥ श्री शय॒ज्य तिरथ सार, गिखिरमां जेम मेरू उदार ठाकुर रामा अपार मंममांही नवकार जाणु, तारा मां जेम चंद्र वखाणु जलधर जलमां जणु. पंखी मांहे जेम उत्तम हंस, फुलमांही तेम ऋषभनो वंश नासितणो मे अंश क्षमावंतमां श्री अरिहंत, तप शुरामां महामुनिवंत शेजे गया गुणवन्त (२) अजितजिन-स्तुति विजयासुत वंदो, तेजथी ज्युं दिणदो । शीतलताए चंदो, धीरताए गिरिंदो ॥

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