Book Title: Prachin Stavan Jyoti
Author(s): Divya Darshan Prakashan
Publisher: Divya Darshan Prakashan

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Page 144
________________ [ १२३ ] जैसे बने ऐसे करो, दिल निज स्वभाव में, मेरा नूर मुझे बकशिश करो। मे० २ ॥ तुंहि त्राता तंही भ्राता, तुंही रक्षणकार है, तुहि ब्रह्मा तुंही विष्णु, तुही तारणहार है। मेरी डुबती नैया को पार करो ॥ मे० ३॥ पूरब फिरा पश्चिम फिरा, दक्षिण फिरा, उत्तर फिरा, देखा नहीं दरवार ऐसा, चमकता आतम हीरा । ___ मेरी ज्योति से ज्योत मिलान करो । मे० ४ ॥ तुं जुदा नहीं मै जुदो नहीं और कोई जुदा नहीं, .... पर्दा उठे जो कर्म का, तो भरम सब भागे सही, प्रभु वही करम पट दूर करो ॥ मे० ५॥ आतम-कमल में है भरी, खुब खुबीयां जिनराजजी, लब्धी विकासी नाथ मेरे, सारो सघरे काजजी, ___ मेरे ज्ञान खजाने को खुब भरो। मैं ६ ॥ अष्टमीका स्तवन हारे मारे ठाम धर्मना साडा पचवीश देश जो दीपे रे तीहां देश मगध सहुमां शिरे रे लोल, हारे मारे नयरी तेहमां, राजगृही सुविशेष जो, राजे रे तिहां श्रेणीक गाजे गज परे रे लोल ॥१॥ हारे मारे गाम नयर पुर पावन करता नाथ जो, विचरंता तिहां आवी वीर समोसर्या रे लोल ॥ हां० ॥२॥ चउद सहस मुनिवरनो साथे साथ जो, सुधा रे तप संयम शियले अलंकर्या रे लोल, हारे फूल्या रसभर भुलया अंब कदंबजो जाणुं रे गुण शील वन हसी

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